इस कदर नाकामियोंसे प्यार था
ज़िंदगी की दौडसे इन्क़ार था
है पुराना बाढ आने का चलन
मेरी गलती है की मैं मँज़धार था
भूक़ से बेहाल होकर मर गया
लोग कहते हैं कोई खुद्दार था
फूल तू, गुलशन गली तेरी मगर
लौटकर देखा, जिगरमें खार था
ग़म न कर जो तेरे ग़ममें मर गया
खुदकुशी थी, तू तो बस औज़ार था
करवटें बदली हैं तेरी याद में
ख़्व्वाबमें भी तेराही रुखसार था
यह न समझो बस ज़रासी थी झलक
पद्मिनी के वासते जोहार था
लाख टोका, बेशरम फिर आ गया
क्या करे, यमदूत भी लाचार था
रविवार, मार्च 28, 2010
शुक्रवार, मार्च 19, 2010
इसे काट देना ही बेहतर रहेगा
इसे काट देना ही बेहतर रहेगा
यह रिश्तों का धागा उलझकर रहेगा
जवाँ हो गयी है मेरे दिल कि कष्टी
ग़मों का कहीं तो समंदर रहेगा
चली बदहवा, नींद शोलों की टूटी
घरोंदा हमारा झुलसकर रहेगा
सितारें जहाँ टूटकर गिर चुके हैं
उन्हीमें कहीं अपना रहबर रहेगा
बिगडता है अक्सर ज़रा बनते बनते
यह शायद हमारा मुकद्दर रहेगा
कभी जाम छलके, कभी अश्क छलके
जिसे मस्त जीना है, पीकर रहेगा
न सीनेमें तूफाँ दबाओ, 'भँवर', तुम
वह जीतेजी दिलको डुबोकर रहेगा
यह रिश्तों का धागा उलझकर रहेगा
जवाँ हो गयी है मेरे दिल कि कष्टी
ग़मों का कहीं तो समंदर रहेगा
चली बदहवा, नींद शोलों की टूटी
घरोंदा हमारा झुलसकर रहेगा
सितारें जहाँ टूटकर गिर चुके हैं
उन्हीमें कहीं अपना रहबर रहेगा
बिगडता है अक्सर ज़रा बनते बनते
यह शायद हमारा मुकद्दर रहेगा
कभी जाम छलके, कभी अश्क छलके
जिसे मस्त जीना है, पीकर रहेगा
न सीनेमें तूफाँ दबाओ, 'भँवर', तुम
वह जीतेजी दिलको डुबोकर रहेगा
रविवार, मार्च 14, 2010
मरकर सही, दिल को ज़रा आराम आया
मरकर सही, दिल को ज़रा आराम आया
इन्कार भी , उनका, चलो , कुछ काम आया
उनकी गली की ख़ाक भी कहने लगी है
फिरसे मुहल्ले में वही बदनाम आया
सो ले ज़रा हम ओढकर चादर कफन की
यारो, अभी उनका कहाँ पैग़ाम आया ?
या रब, तुझी को ढूँढने घर से चले थे
हरसूँ किसी काफ़िर सनम का गाम आया
एहसान मानो, आह तक भरतें नहीं हम
इस कत्ल का तुमपर कहाँ इल्ज़ाम आया ?
तोडा कभी मंदिर, कभी मस्जिद गिराई
ना रोकने आया खुदा, ना राम आया
अंजाम-ए-मेहफ़िल साफ अब दिखने लगा है
कहने गज़ल फिर शायर-ए-नाकाम आया
कैसे मुकम्मल हो ’भँवर’ दीवान तेरा ?
आगाज़ से पहले तेरा अंजाम आया
इन्कार भी , उनका, चलो , कुछ काम आया
उनकी गली की ख़ाक भी कहने लगी है
फिरसे मुहल्ले में वही बदनाम आया
सो ले ज़रा हम ओढकर चादर कफन की
यारो, अभी उनका कहाँ पैग़ाम आया ?
या रब, तुझी को ढूँढने घर से चले थे
हरसूँ किसी काफ़िर सनम का गाम आया
एहसान मानो, आह तक भरतें नहीं हम
इस कत्ल का तुमपर कहाँ इल्ज़ाम आया ?
तोडा कभी मंदिर, कभी मस्जिद गिराई
ना रोकने आया खुदा, ना राम आया
अंजाम-ए-मेहफ़िल साफ अब दिखने लगा है
कहने गज़ल फिर शायर-ए-नाकाम आया
कैसे मुकम्मल हो ’भँवर’ दीवान तेरा ?
आगाज़ से पहले तेरा अंजाम आया
बुधवार, मार्च 10, 2010
जब भी मिली, मिलकर गलें, बोली उदासी
जब भी मिली, मिलकर गलें, बोली उदासी
"बिछडे हुए दो दिल मिलें", बोली उदासी
अपने वफादारोंमें लिख लो नाम मेरा
क्यों हममें तुममें फासलें, बोली उदासी
अपने भी कुछ अरमान हैं, कुछ ख़्वाब रंगीं
अपनें भी घर फूले-फलें, बोली उदासी
कोई नहीं है हमसफर, साथी हमारा
खुशियों के लाखों काफ़िलें, बोली उदासी
कोई मुहब्बत के तराने भी सुनाए
कब तक ग़मों के वलवलें, बोली उदासी
कोई तो हँसकर थाम ले बाहें हमारी
हमको मिलें बस दिलजलें, बोली उदासी
कोई न हो साथी तुम्हारा, हम रहेंगे
हर शाम-ए-ग़म मिलकर चलें, बोली उदासी
आए हो तुम, खुशियोंने जब दामन छुडाया
खुदके नहीं यह फ़ैसलें, बोली उदासी
गहराइयाँ ग़म की, 'भँवर', हमसे न पूछो
कहिं कम पडे ना हौसलें, बोली उदासी
"बिछडे हुए दो दिल मिलें", बोली उदासी
अपने वफादारोंमें लिख लो नाम मेरा
क्यों हममें तुममें फासलें, बोली उदासी
अपने भी कुछ अरमान हैं, कुछ ख़्वाब रंगीं
अपनें भी घर फूले-फलें, बोली उदासी
कोई नहीं है हमसफर, साथी हमारा
खुशियों के लाखों काफ़िलें, बोली उदासी
कोई मुहब्बत के तराने भी सुनाए
कब तक ग़मों के वलवलें, बोली उदासी
कोई तो हँसकर थाम ले बाहें हमारी
हमको मिलें बस दिलजलें, बोली उदासी
कोई न हो साथी तुम्हारा, हम रहेंगे
हर शाम-ए-ग़म मिलकर चलें, बोली उदासी
आए हो तुम, खुशियोंने जब दामन छुडाया
खुदके नहीं यह फ़ैसलें, बोली उदासी
गहराइयाँ ग़म की, 'भँवर', हमसे न पूछो
कहिं कम पडे ना हौसलें, बोली उदासी
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