बुधवार, अप्रैल 30, 2014

वह हँसी रात भी आखिर को वहम की निकली

वह हँसी रात भी आखिर को वहम की निकली
जो नज़र प्यार की समझा वह रहम की निकली

जब गलत राह पे चलने कि वजह को ढूँढा
बात उन मिटते हुए नक्षेकदम की निकली

घर जलें, लोग जलें, फिर से अमन खाक हुआ
आग देखी तो वही दीन-धरम की निकली

बुतपरस्तीमें कहीं रात गुज़र ना जाये
बेवजह बात ज़नानेमें हरम की निकली

चार दिन साथ रही, लौट गयी घर अपने
हूर कोई वह, 'भँवर', मुल्केअदम की निकली