शुक्रवार, दिसंबर 25, 2009

ज़िंदगी के ख्वाब से मैं डर रहा हूँ

ज़िंदगी के ख्वाब से मैं डर रहा हूँ
मौत के आनेसे पहले मर रहा हूँ


मौत से डरता रहा हूँ रात-दिन मैं
इस तरह, ना जी रहा, ना मर रहा हूँ

कारवाँ चलता रहा है ज़िंदगी का
मैं ज़रा पीछे मगर अक्सर रहा हूँ


बंद दिल के द्वार जब से कर चुकी वह
मैं तभी से आज तक बेघर रहा हूँ

वह गयी तो दिल धडकना छोड बैठा
सिर्फ़ इक बेजानसा पैकर रहा हूँ

अब तो खुशबूभी नहीं उनके ज़हनमें
इत्र दामन का कभी बनकर रहा हूँ

बढ रहा था, आ गया ठहराव कैसा ?
आप अपनी राहमें पत्थर रहा हूँ

हँस रहें हो देखकर खाली सुराही
यह न भूलो मैं कभी साग़र रहा हूँ

और तो कुछ बन न पाया ज़िंदगीमें
फ़क्र हैं मुझको, 'भँवर', शायर रहा हूँ

शनिवार, दिसंबर 19, 2009

दिल टूटने का जैसे दस्तूर होगया है

दिल टूटने का जैसे दस्तूर हो गया है
बरबादियों का किस्सा मशहूर हो गया है


अब जाके साहिलों का मैं दर्द जान पाया
कोई करीब आकर फिर दूर हो गया है


कैसे निजात पाऊँ मैं दर्दोरंजोग़मसे ?
मेरा रकीब उनका सिंदूर हो गया है


कोई गवाह होता दिल टूटने का, या रब
इल्ज़ामेबेवफाई मंजूर हो गया है


जब कोई शै जलेगी, होगा तभी उजाला
शायद इसीलिये दिल मजबूर हो गया है

सोमवार, दिसंबर 14, 2009

पँखडी को चूमकर शबनम हवामें खो गयी

पँखडी को चूमकर शबनम हवामें खो गयी
लाजसे चटकी कली, खिलकर जवाँ फिर हो गयी


गेसुओं की छाँवमें या हिज्रमें रातें कटी
दूर दोनो सूरतोमें नींद तो कोसो गयी


फिक्र गर होती हमारी, रुक न जाती वह ज़रा ?
करवटें बदला किये हम, रात आयी सो गयी


आपसे तो नर्मदिल हैं आसमाँकी बदलियाँ
आग जब दिलमें लगी तो चार आँसूँ रो गयी


आसुओंसे गुलशनेदिल जब पड हैं सिंचना
तब पता हमको चला वह बीज कैसे बो गयी


क्या उन्हें एहसास हैं हम जी रहें हैं किस तरह ?
वह हमें लंबी उमर की बददुवा दे तो गयी

मंगलवार, दिसंबर 08, 2009

बेरुखी यह आपकी होगी गवारा कब तलक ?

बेरुखी यह आपकी होगी गवारा कब तलक ?

हुस्न करता इश्कसे, देखें, किनारा कब तलक



हमनवा बन जाइएगा, झूमने मेहफ़िल लगे

मैं बजाऊँ साजेदिलका एकतारा कब तलक ?



दो हिमाला का पता या फिर पता दो यार का

दरबदर फिरता रहूँगा बेसाहारा कब तलक ?



छुप न पाये चाँद-तारें शाम के होते जवाँ

इस जहाँसे तुम छुपाओगी नजारा कब तलक ?



आ, 'भँवर', उनको सुनाए हालेदिल मिलकर गले

धडकने खुदकी सुनेगा दिल हमारा कब तलक ?