रविवार, नवंबर 28, 2010

अभी कुछ और है लड़ना ज़मानेसे

अभी कुछ और है लड़ना ज़मानेसे 

कभी का रूठता वरना ज़मानेसे 



नहीं मंजूर गर कटना ज़मानेसे 


तो है लाज़िम सुलह करना ज़मानेसे 



लड़ाई एकतर्फा, जीत मुष्किल है 


अभी इन्सान है अदना ज़मानेसे 



ज़माना था कहाँ, पहुँचा कहाँ देखो 


रहे मुफ्लिस वहीं, कहना ज़मानेसे 



कई भूखें, कई नंगें, कई बेघर 


अभी कितनों को हैं हटना ज़मानेसे 



छुपा रख्खे हैं हमने ख्वाब सीनेमें 


सहा जाता नहीं सपना ज़मानेसे 



छुपाओ लाख मीना और साग़र को 


छुपे ना, हाय, लड़खड़ना ज़मानेसे 



हमीमें रह गई होगी कमी कोई 


शिकायत क्या युँहीं करना ज़मानेसे 



’भँवर’ने नाव को कुछ इस तरह मोडा 


अलग होकर पड़ा बहना ज़मानेसे

गुरुवार, नवंबर 18, 2010

हस्ती है हमारी किसी हुबाब की तरह

हस्ती है हमारी किसी हुबाब की तरह

उसपर यह दिल्लगी तेरी अज़ाब की तरह



लगते हो हमें आप माहताब की तरह


जो रात ढले चल दिया जनाब की तरह



गर ज़ख़्म किये हुस्नने; गिना न कीजिये


होता है कभी प्यार भी हिसाब की तरह?



नारा-ए-मुहब्बत लगा लगा के थक गये


है प्यार भी दुशवार इनकलाब की तरह



इक उम्र हुई तुम मिले, मगर खुमार है


चढती है मुलाकात भी शराब की तरह



मत पूछ हमें मैकदा नसीब क्यों हुआ


वह प्यास बढाते रहे सराब की तरह 



परदा नहीं है फिरभी है पर्दानशीं 'भँवर'


ओढे हुए है वह हँसी नकाब की तरह

शनिवार, नवंबर 13, 2010

शहर है यह या भरा बाज़ार है

शहर है यह या भरा बाज़ार है

बिक रहा है हर कोई, लाचार है



पत्थरोंके बीज बोए वक़्तने


अब जहाँ जाए नज़र, दीवार है



काम यह वैदो-हकीमों का नहीं


इस वतन की रूह तक बीमार है



ढाँपकर मुँह कर रहे ऐयाशियाँ


यूँ कहो के लोग इज़्ज़तदार है



हमकदम कैसे बने कोई तेरा


ज़िंदगी, कैसी तेरी रफ्तार है