रविवार, जून 28, 2009

होती नही किसीके वह इख़्तियारमें

होती नही किसीके वह इख़्तियारमें
आकर ख़िजाँ रहेगी बागे-बहारमें


मैं अंजुमन अकेला, तनहा हजारमें
इतना कभी न खुश था जितना मज़ारमें


अरसा हुआ किसीकी आहट सुने हुए
पाज़ेब क्या बजेंगे उजडे दयारमें ?


ना शाम-ए-ग़म कटी, ना रातें फ़िराक़की
इक उम्र कट गई है सब्रोकरारमें


सहरा-ए-ज़िंदगीमें चलती हैं आँधियाँ
किसके निशाँ रहें हैं बाकी गुबारमें ?

मंगलवार, जून 16, 2009

गोतें लगा रहा हूँ सागर की मौज में

गोतें लगा रहा हूँ सागर की मौज में
ना सीपमें है मोती, मस्ती न जाम में


बिन लडखडाए चलना आसाँ नहीं रहा
क्यों होश माँगते हो पीने के दौर में ?


दुखमें नशा रहेगा शायद शराबसा
डूबे रहें वगरना क्यों लोग सोग में ?


अब क्या तुम्हें बताऊँ जख़्मों की दास्ताँ
दुष्मन करीब आए रिश्तों की ओट में


ऐसा नहीं के मुझको सागरसे प्यार है
होता नहीं सभीके साहिल नसीब में


ऐ दोस्त, मैकदे की यह राह तो नहीं ?
देखी न भीड ऐसी मस्जिद में, दैर में


इस मैकदेसे आखिर ना प्यास बुझ सकी
पीरी हुई, चला हूँ ; आया शबाबमें


आये, गये सुखनवर अच्छे, बुरे कईं
किसने सुनी किसीकी दुनिया के शोरमें ?


बाज़ार में मिलेगी हर शै, ’मिलिंद’ पर
तू तो निकल पडा है इन्साँ की खोज में...



शनिवार, जून 13, 2009

रोज़ खुशबू यार की लाया न कर

रोज़ खुशबू यार की लाया न कर
ऐ सबा, ख्वाबों को सहलाया न कर

बढ न जाए दर्दे-दिल हदसे कहीं
दिल मेरा ऐसे तो बहलाया न कर

कर न बैठूं मैं कही गुस्ताखियाँ
मेरी जानिब देख मुस्काया न कर

रूठकर तुझसे न वह पर्दा करे
दिल कहीं तू और बहलाया न कर

टूटना मुमकिन है उनका जानकर
देखनेसे ख्वाब घबराया न कर

आखरी उपहार है तू यार का
उम्रभर, ऐ जख्म़, भर जाया न कर

जिस ओर देखता हूँ उसकी निशानियाँ है

जिस ओर देखता हूँ उसकी निशानियाँ है
यह और बात मेरी नजरें धुवाँ धुवाँ है

मैं हाथ थाम लेता गर पासबाँ न होते
उसकी कलाइयोंमें दरवान चूडियाँ हैं

बिजली गिरागिराकर पूछो न दिलजलोंसे
दिल दाग दाग क्यों है, क्यों खा़क बस्तियाँ हैं ?

आए रकीब कितने इस प्यार के सफ़रमें
लूटें मुहाफ़िजोंने इस बार कारवाँ हैं

वह टूटनाभि, यारों, कितना हसीन होगा
दीदार संगदिल का, जब ख़्वाब शीशियाँ है

सायें है ज़िंदगीपर गुजरे हुए दिनोंके
काजलभरा समाँ है, पुरपेच बदलियाँ हैं

लो शाम हो चली है उसकी इनायतोंकी
अब रात उम्रभर है, मैं हूँ, उदासियाँ है...

दर्दे-दिल फ़िर बढ रहा है, जामे-उल्फ़त दे मुझे

दर्दे-दिल फ़िर बढ रहा है, जामे-उल्फ़त दे मुझे
प्यास दो दिन की नही यह, ताकयामत दे मुझे

कौन कहता है दवा इस मर्ज़ की कोई नही
इक झलक मुखडा दिखा जा और राहत दे मुझे

सुर्ख होटों की सुराही मैकशों की जुस्तजू
सिर्फ़ दो बुंदें चुरा लूँ गर इजाज़त दे मुझे

जाम भी है और साकी भी नज़र के सामने
मैकदे तक जा न पाऊँ यह सज़ा मत दे मुझे

या जलाकर शम्म उल्फ़त की मुझे पुरनूर कर
या शिकस्ता-इश्क़-मजनू की शहादत दे मुझे

यूँ परायीसी नज़रसे देखना अच्छा नही
या निगाहोंमें मुहब्बत या अदावत दे मुझे

छेड ले जी-भर मुझे तू पर ज़रा यह सोच ले
रब किसी दिन भूलकर तुझसी न फ़ितरत दे मुझे


छेड ले जी-भर मुझे तू पर ज़रा यह सोच ले
देख तेरी दिल्लगीको कौन इज़्ज़त दे मुझे ?

कुलमिलाकर प्यार की दो-चार घडियाँही मिली
वस्ल की शबभी सबरकी ना हिदायत दे मुझे

मैं नज़रसे पी रहा हूँ शोखियाँ जब हुस्नकी
एक कतराभी न छलके यह निआमत दे मुझे

बुतपरस्ती की बुराई खूब तू कर ले मगर
देख ले वाइज़ उसे तू, फ़िर नसीहत दे मुझे