सोमवार, जून 21, 2010

नसीहत ख़िज्र की सुनती है दुनिया

नसीहत ख़िज्र की सुनती है दुनिया

मगर कुछ कान से बहरी है दुनिया



सभी ख्वाबों-खयालोंमें मगन है


न जाने किस तरह चलती है दुनिया



सुना करते थे बदलेगा ज़माना


(किताबोंमें यही लिखती है दुनिया)



गले से ज़िंदगी को मत लगाना


तुम्हें अय्याश कह सकती है दुनिया



इन्ही से तो पनपती है बगावत


सनम, ख्वाबोंसे ही डरती है दुनिया



हमें क्यों फिक्ऱ हो उस बेवफाकी ?


सँभालेगा वही जिसकी है दुनिया



'भँवर' तेरे लिए ही ठीक होगी


शरीफों पर कहाँ जचती है दुनिया ?