गुरुवार, नवंबर 06, 2014

ज़िंदगी की दौड में नींद कम, आराम कम

ज़िंदगी की दौड में नींद कम, आराम कम
इस लिये दे पाते हम ख़्व्वाब को अंजाम कम

अब खुमार आता नहीं, दर्देदिल जाता नहीं 
जाये भी तो किस तरह; ग़म जियादा, जाम कम

फलसफे इस दौर के खुष्क हैं, बेजान हैं
शेख, पंडित हैं बहुत, ग़ालिबोखय्याम कम

साफ ज़ाहिर है कहाँ लोग पाते हैं सुकूँ
बढ रहे हैं मैकदे, हो रहे हैं धाम कम

कौन कहता है, 'भँवर', दौर है महँगाई का?
हो रहा है दिनबदिन आदमी का दाम कम