शनिवार, अक्तूबर 13, 2012

रोशनी होगी, सहर की राह देखो

रोशनी होगी, सहर की राह देखो
मुफ़्लिसों, अहलेवतन की चाह देखो

राह लंबी थी, कड़ी थी धूप लेकिन
लो, नज़र आने लगा है गाह, देखो

ख्वाहिशें कुछ रह गयी तो ग़म न करना
रामजी को भी मिला ना माह, देखो

अपनी तनहाई में यादों को टटोलों
हो वहीं शायद कोई हमराह, देखो

फिर कोई मासूम बच्चा हँसके बोला
आज फिर निकला है नंगा शाह, देखो

है भलाई दूर रहनेमें 'भँवर'से
डूब जाओ ना कहीं नागाह, देखो