शनिवार, अक्तूबर 22, 2011

कहाँ है वक़्त अब आराम का?

कहाँ है वक़्त अब आराम का?
मुहब्बत काम सुबह-ओ-शाम का

तुम्हारे सामने किस काम का?
नशा फीका लगे इस जाम का

बुलाया अहल-ए-दिल को बज़्ममें
इरादा हो न कत्ल-ए-आम का

न जाने कब झुकी नज़रें उठें
न देखो रासता पैग़ाम का

लबों पर माशुका कब तक, 'भँवर'?
कभी तो नाम ले लो राम का

फूल गालोंपर सजाये रंजमें

फूल गालोंपर सजाये रंजमें
अश्क वह शबनम बताये रंजमें

हो सके तो बूझ उसके दर्दको
दूसरोंको जो हसाये रंजमें

जानकर अंजान बनते हैं सभी
लोग सब अपने-पराये रंजमें

घायलों को मुफ्तमें मिल जाती है
क्यों नमक बैठे-बिठाये रंजमें?

और क्या भगवानसे माँगू 'भँवर'?
आ गया वह बिनबुलाये रंजमें