सोमवार, फ़रवरी 22, 2010

कई सदियोंसे बैठे हम खुशी की राह तकतें हैं

कई सदियोंसे बैठे हम खुशी की राह तकतें हैं


बिताने को शबेफुरकत ग़मोंके जाम चखतें हैं




खुली आँखोंसे हम पूजा किसीकी कर नहीं सकतें


पुराने मंदिरोंके बुत ज़रा टुटेसे लगतें हैं




बडा आसान होता है किसीसे प्यार कर लेना


हमें देखो, यही गलती हज़ारों बार करतें हैं




तुम्हारी शानमें गुस्ताख़ियाँ करतें रहें अब तक


तुम्हारी शानमें, लो, आज कुछ अशआर कहतें हैं




तेरा छूना नहीं है लाज़मी गुँचें चटकने को


'भँवर', तेरे बिना भी अनगिनत गुलज़ार खिलतें हैं

फूल बरसों तक चढाएँ पत्थरोंपर

फूल बरसों तक चढाएँ पत्थरोंपर

नाम तब आया हमारा उन लबोंपर



प्यास दिल कि कब बुझी है आँसुओंसे ?

कम नहीं था वरना पानी आरिज़ोंपर



यह दुवा है उम्रभर वह मुस्कुराए

जान भी कुरबान ऐसी हसरतोंपर



क्या चलन बदला हुआ है मौसमोंका ?

क्यों ख़िज़ाँ छाने लगी है कोंपलोंपर ?



आँधियोंने फिर हमारी लाज रख ली

डूबते हम जा रहे थे साहिलोंपर

शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010

टुकडे टुकडे हैं जमीनोआसमाँ तनहा

टुकडे टुकडे हैं जमीनोआसमाँ तनहा

हर नगरकी हर गलीका हर मकाँ तनहा 


बटते बटते बट चुका है आदमी इतना


ज़िस्मसे होकर अलहदा आज जाँ तनहा



जब सवालेज़िंदगी हैं मुख्तलिफ़ सबके


हर किसे देना पडेगा इम्तहाँ तनहा



हमखयालोहमनवा मिलता नहीं सबको


हालेदिल शायर करे अक्सर बयाँ तनहा



फेरकर मुँह चल दिया है नाखुदा कब का


आँधियोंसे लढ रहा है बादबाँ तनहा


कौनसी मंज़िलपे तू मिल जायेगा मुझको ?


अब चढा जाता नहीं इक पायदाँ तनहा



तीन हिस्सोंमें गुलिस्ताँ बट गया अपना


रह गये तनहा यहाँ हम, वह वहाँ तनहा


इस चमनमें गीत अब गातें नहीं पँछी


ऐ ’भँवर’ तू ही नहीं है बेज़बाँ तनहा 

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

ज़रा नज़रें झुकाकर बात करते, बात बन जाती

ज़रा नज़रें झुकाकर बात करते, बात बन जाती

न था मुमकिन तो बस दीदार करते, बात बन जाती


रिवाज़ोरस्मेदुनिया के बहाने कब तलक दोगे ?

कभी दुनिया को भी नाराज़ करते, बात बन जाती


ज़माने की नज़र दिनरात है हमपर, चलो माना

कभी ख्व्वाबोंको ही गुलज़ार करते, बात बन जाती


घनेरे बादलोमें चाँद को कुछ और निखराते

चमकती आँख सुरमेदार करते, बात बन जाती


ज़रूरत क्या थी अपने हाथमें खंजर उठानेकी ?

नज़रसे मौत का सामान करते, बात बन जाती


हमेशा हुस्न के आगे झुके आशिक़ भला क्योंकर ?

उन्हेभी छेडते, बेहाल करते, बात बन जाती


कचहरी और कुतवाली के चक्कर क्यों लगाते हो ?

हमारी हमसे ही फरयाद करते, बात बन जाती


खुशी तो है के हमसे प्यार आख़िर कर लिया तुमने

जवानीमें अगर आगाज़ करते, बात बन जाती


बराये मेहरबानी ना मिलो तनहा रकीबोंसे 

सरेमेहफ़िल हमें रुसवाह करते, बात बन जाती


गज़ल लंबीसी कह देना कहाँ इतना ज़रूरी था ?

'भँवर' दिलसे ज़रासी आह करते, बात बन जाती