बुधवार, सितंबर 09, 2009

प्यास बुझा लें, फिर कर लेंगें धरम-करम की बातें

प्यास बुझा लें, फिर कर लेंगें धरम-करम की बातें
जाम ज़रा छलकाकर कर लें, आ, ज़मज़म की बातें


देख ज़रा, सजधजकर दुनिया फैल रही है बाहें
खूब गले मिल ले उससे तू, छोड अदम की बातें


कल तक हमसे आँख मिलाकर छेड रहा था कोई
आज अचानक क्यों परदा, क्यों लाज-शरम की बातें ?


मूँद ज़रा ली आँख किसीने, प्यार समझ बैठा मैं
आँख खुली तो जान गया, हैं सिर्फ़ वहम की बातें


ग़ालिबसा उस्ताद मिले तो शायर मैं बन जाऊँ
मेहफ़िलमें होंगी तब मेरे नक्षेकदम कीबातें


इक दिन तो जी भरकर पी लूँ सुर्ख लबों के प्यालें
क्यों करते  हो रोज़ ’भँवर’से , वाइज़, कम की बातें ?