बुधवार, अगस्त 05, 2009

आज फ़िर गुज़री जवानी याद आई

आज फ़िर गुज़री जवानी याद आई
फ़िर मुहब्बत की, जिगर पर चोट खाई


फ़िर हवाओं को चुनौती दे रही है
फ़िर दिलोंमें प्यार की लौ टिमटिमाई


इश्कमें दिल हारने पर रो रहे हो
जब कफन बाँधें खडी सारी खुदाई


बारहा दिलने किया आगा़ह हमको
हम युँहीं देते रहे दिल को दुहाई


काश, अपने दिल के अंदर झाँक लेते
बेसबब होती नहीं है बेवफाई


जाम, साकी, इश्क़ के देखो परे भी
तब समझ खय्यामकी आये रुबाई


यह कभी पसली हमारें जिस्म  की थी
क्या गज़ब की चीज़ हव्वा है बनाई


क्या शिकायत खा़क होने की करें हम?
इश्क़ की यह आग हमने खुद लगाई


हर्फ़ तक आता नहीं अपना वजनसे
फलसफे की बात यह किसने चलाई?

2 टिप्‍पणियां:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

बारहा दिलने किया आगा़ह हमको
हम युँहीं देते रहे दिल को दुहाई
काश, अपने दिल के अंदर झाँक लेते
बेसबब होती नहीं है बेवफाई


अच्छी ग़ज़ल है.

- सुलभ ( यादों का इंद्रजाल )

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

behatareen rachna, har sher lajawaab. dheron badhaai.shabd pushtikaran hata den.