मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

उनको देखा, दिल मचलकर रह गया

उनको देखा, दिल मचलकर रह गया

चोट खाई, बन के पत्थर रह गया



मिट गये कितने ही ज़ख्मों के निशाँ

ज़ख्म दिल का बनकर नश्तर रह गया



क्या मिला है मुझको आँखें खोलकर ?

हर नज़ारा ख्वाब बनकर रह गया



चार आँसू क्या बहाए हुस्नने

हौसला-ए-संग ढहकर रह गया



ऐ ग़मों, अब अश्क़ ना माँगा करो

बनकर सहरा वह समंदर रह गया



देख, शायद चाँदपर इन्साँ मिले

ढूँढने याँ कौनसा घर रह गया ?



ज़िंदगी गहरी नदी सी बीचमें

पार जिसके मेरा नैहर रह गया

2 टिप्‍पणियां:

Shekhar Kumawat ने कहा…

ज़िंदगी गहरी नदी सी बीचमें

पार जिसके मेरा नैहर रह गया


BEHAD SUNDAR

BAHUT ACHA LAGA PAD KAR AAP

SHEKHAR KUMAWAT

http://kavyawani.blogspot.com/

सीमा सचदेव ने कहा…

ज़िंदगी गहरी नदी सी बीचमें

पार जिसके मेरा नैहर रह गया
sundar abhivayakti