रविवार, मार्च 27, 2011

आँखोंसे कुछ और बरसो, आँसुओं

आँखोंसे कुछ और बरसो, आँसुओं

इन चिरागों को बुझा दो, आँसुओं


आज तक मैं ख़्व्वाबमें मश्गूल था

आँख खुलवाओ, जगाओ, आँसुओं


अब न वह साकी; न साग़र हाथमें

प्यास अब तुमही बुझाओ, आँसुओं


छोडकर अपने-पराये चल दिये

आके तनहाई मिटाओ, आँसुओं


दिल अगर टूटे तो रोना चाहिये

रस्मे-उल्फत है, निभाओ, आँसुओं

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