रविवार, अगस्त 28, 2011

उजाले ढूँढनेसे कब मिले हैं ?

उजाले ढूँढनेसे कब मिले हैं ?

उफ़क़पर हैं, कभी पैरोंतले हैं


लिखी नाकामियाँ तकदीरमें या


कहीं कमज़ोर अपने हौसले हैं



सुबह के ख्व्वाब हमको ना दिखाओ


हमारे दिन सियाहीमें घुले हैं



सियासी हाथपर ना खून ढूँढो


सुना है दूध के वह सब धुले हैं



यह माना वस्लमें कुछ मुष्किले हैं


ज़मींसे हम, फलकसे वह चले हैं



'भँवर' दरजी बडा नादान निकला


है दामन चाक लेकिन लब सिले हैं

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

भाई वाह...बहुत खूब...दाद कबूल करें...

नीरज