सोमवार, सितंबर 12, 2011

दिल-ए-नाशाद को बेताब-ओ-बेकरार हुए

 दिल-ए-नाशाद को बेताब-ओ-बेकरार हुए

 हो गया एक ज़माना विसाल-ए-यार हुए



गुंचा-ए-दिल कि तरफ देख, सूखने न लगे

एक अरसा हुआ आँखों को अश्कबार हुए



वह कहीं झीनत-ए-दीवार कर न ले सर को

कू-ए-जानामें थे आशिक कईं शिकार हुए



दोस्त कुछ खास मिले हैं उन्हें ज़रूर वहाँ

लौट आये न कभी जो नदी के पार हुए



वह न पुरसिश को चले आए बेनकाब, 'भँवर'

अभी दो दिन न हुए तीर आरपार हुए

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