शनिवार, दिसंबर 10, 2011

शायर-ए-नाकाम हैं, पर है तबीयत शायराना

एक हज़लनुमा रचना:

शायर-ए-नाकाम हैं, पर है तबीयत शायराना
माँगते फिरते हैं हम सबसे नसीहत शायराना

हमवज़न अल्फ़ाज़ का हमको नहीं है इल्म बिल्कुल
और बेहरों से हमारी है बगावत शायराना

हाँ, कवाफ़ी लडखडाये; हाँ, रदाफ़ी निभ न पायीं
क्या हुआ हमने अगर ली कुछ रियायत शायराना?

शेर के ऐवज में कर ली हो न तुकबंदी ज़रासी
पर सुखनवर के इरादे थे निहायत शायराना

दोस्त हम को देखकर आँखें चुराते हैं, चुराएँ
कब तलक टालेंगे? हम भी है कयामत शायराना

देखकर तुमको, 'भँवर', उस्तादजी कहने लगे है
"फिर चली आयी हमारे घर मुसीबत शायराना"

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