गुरुवार, मार्च 01, 2012

ज़िंदगी का रुख बदल जाता

ज़िंदगी का रुख बदल जाता
या सुकून-ए-मर्ग मिल जाता

मुस्कराता, मैं उजल जाता
ग़म का सूरज, काश, ढल जाता

ज़िद खुशी की मैंने कब की थी?
बस, खुशी का ख़्व्वाब चल जाता

यह ज़ियादा तो न थी ख़्वाहिश
एक दिन तो दिल बहल जाता

रोते रोते ज़िंदगी गुज़री
हँसते हँसते दम निकल जाता

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