सोमवार, अक्तूबर 21, 2013

लगाओ ना गले मुझको, बहारो

लगाओ ना गले मुझको, बहारो 
कहीं तुम भी न मुरझाओ, बहारो 

टली है ना कभी पतझड टलेगी
खिलो लेकिन न इतराओ, बहारो 

कली को फूल करना चाहते हो
इरादा क्या है बतलाओ, बहारो 

कभी गुलशन, कभी सहरा बनाया
यह हमसे दिल्लगी छोडो, बहारो 

दरख़्तों की ज़रा लग जाये आँखें
कली की मुष्किलें समझो, बहारो 

चुभन मीठी हो उनकी, ज़ख़्म महकें
कभी काँटों पे भी छाओ, बहारो 

बदन को हम, चलो, समझा ही देंगे
मगर दिल से तो ना जाओ, बहारो 

गुलिस्ताँ में 'भँवर' होंगे न होंगे
खिजाँ के बाद जब आओ, बहारो  

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