कईं बार ऐसा हुआ मुस्कुराते
उमड आये आँसू हँसी आते आते
निगाहों निगाहों में क्या कुछ कहा है
जवानी गुज़रती वह होटों पर आते
जभी जानिब-ए-मंज़िल-ए-इश्क जाते
कभी धुँद छाती, कभी मोड आते
किसी दिन दुबारा मुलाकात होगी
वह झूठी सही, यह तसल्ली दिलाते
ये अंजाम के ख़ौफ से या जुनूँ से
शरारोंभरे दो बदन कपकपाते
रखो सर भरोसे से काँधे हमारे
कटी उम्र सारी जनाज़े उठाते
खयाल आ गया मीर-ओ-ग़ालिब को पढते
’भँवर’ काश हम काफिया यूँ चलाते
उमड आये आँसू हँसी आते आते
निगाहों निगाहों में क्या कुछ कहा है
जवानी गुज़रती वह होटों पर आते
जभी जानिब-ए-मंज़िल-ए-इश्क जाते
कभी धुँद छाती, कभी मोड आते
किसी दिन दुबारा मुलाकात होगी
वह झूठी सही, यह तसल्ली दिलाते
ये अंजाम के ख़ौफ से या जुनूँ से
शरारोंभरे दो बदन कपकपाते
रखो सर भरोसे से काँधे हमारे
कटी उम्र सारी जनाज़े उठाते
खयाल आ गया मीर-ओ-ग़ालिब को पढते
’भँवर’ काश हम काफिया यूँ चलाते
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें