शनिवार, जून 13, 2009

रोज़ खुशबू यार की लाया न कर

रोज़ खुशबू यार की लाया न कर
ऐ सबा, ख्वाबों को सहलाया न कर

बढ न जाए दर्दे-दिल हदसे कहीं
दिल मेरा ऐसे तो बहलाया न कर

कर न बैठूं मैं कही गुस्ताखियाँ
मेरी जानिब देख मुस्काया न कर

रूठकर तुझसे न वह पर्दा करे
दिल कहीं तू और बहलाया न कर

टूटना मुमकिन है उनका जानकर
देखनेसे ख्वाब घबराया न कर

आखरी उपहार है तू यार का
उम्रभर, ऐ जख्म़, भर जाया न कर

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