शनिवार, मई 08, 2010

होंट चाहें और साग़र हैं मिलें

होंट चाहें और साग़र हैं मिले

रूह प्यासी और पैकर हैं मिले



ना उछल, ऐ मौज, चंदा देखकर

आसमाँसे कब समंदर हैं मिले



मिन्नतें की, गिडगिडाए, तब मिले

खूब हमको आज़माकर हैं मिले



इश्कमें तोहफ़ें मयस्सर हो गये

नाज़, नखरें, और तेवर हैं मिले




आजकल खिलने से भी डरता है दिल

गुलशनोंमें भी बवंडर हैं मिले



फूल को पहचानना दुश्वार है

हर कदम, हर मोड पत्थर हैं मिले



धूलको फिर भी गुमाँ होता नहीं

धूलमें लाखों सिकंदर हैं मिले



दर्द के गहरे 'भँवर' में डूबकर

अब सुखन के चंद गौहर हैं मिले

2 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah nayaab gazal...

Mr. Shantaram Khamkar ने कहा…

धूलको फिर भी गुमाँ होता नहीं

धूलमें लाखों सिकंदर हैं मिले

waah waah...