सोमवार, मई 17, 2010

ज़िंदगी है, जंग, लढना सीख लो

ज़िंदगी है जंग, लढना सीख लो

जी सकोगे गर्चे मरना सीख लो



ना रुका है, ना रुकेगा कारवाँ

साथ दो या धूल बनना सीख लो



बेटियों जैसी चली वह जाएँगी

हँसके साँसोंसे बिछडना सीख लो



लोग मिलकर फिर जुदा हो जाएँगे

प्यार तनहाई से करना सीख लो



मंज़िलें तो उम्रभर तरसाएँगी

राह तुम अपनी बदलना सीख लो



वाईज़ों का बीचमें क्या काम है?

खुद खुदा से बात करना सीख लो

1 टिप्पणी:

दिलीप ने कहा…

achchi nazm pesh ki...