मंगलवार, जुलाई 13, 2010

उजाले आप की आँखोंके कुछ मिलते निशानीमें

उजाले आप की आँखोंके गर मिलते निशानीमें

जला लेते दिये यादों के हम ग़म की सियाहीमें



कभी "उफ" तक, सनम, करते नहीं हम बेकरारीमें

रियायत आप गर करते कभी वादाखिलाफ़ीमें



अभी तक डर रहा हूँ, नींद फिर आए न आँखोंमें

किसीसे आशना हूँ, ख्वाब देखा था जवानीमें



कहा जब संग उनको, पत्थरोंने भी शिकायत की

"कभी पत्थर हुए शामिल किसी की जगहसाईमें ?"



 ग़मे-हस्ती ग़मे-नाकाम हसरत से जुदा क्या है ?

तमन्नाएँ सभी किसकी हुई पूरी खुदाईमें ?



ज़मानेभर की रुसवाई चली आई है मिलनेको

'भँवर', रह जाए ना कोई कसर मेहमाँनवाज़ीमें

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