शुक्रवार, सितंबर 24, 2010

फर्ज़

कितनी आसानीसे जाँ से दिल जुदा किया

आज हमने हँसके बेटी को बिदा किया



जब तलक वह थी यहाँ, घर दैरसा लगा

वह गई, पाकीज़गीने अल्विदा किया



देवता की देन थी, फिरभी न रख सके

फर्ज़ हमने बाप होने का अदा किया



ऐ नमी, तू आँखमें बेवक़्त आ गई

अपने घर वह जा रही थी, ग़मज़दा किया



जा; 'भँवर' से दूर इक साहिल तुझे मिले

अब किसी अपने को तूने नाखुदा किया...


2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...

माधव( Madhav) ने कहा…

nice