शनिवार, दिसंबर 18, 2010

हमें काफिर कहे वह जो खुदा हो

हमें काफिर कहे वह जो खुदा हो
चलो, फिर आपसेही इब्तिदा हो

कहें कैसे, पिलाते हो नज़रसे ?
अगर बदनाम हो तो मैकदा हो

गुनाहे-इश्क़ है, काज़ी बुलाओ
उमरभर की सज़ा बाकायदा हो

हमें तो सर झुकाने से है मतलब
दर-ए-जाना, हरम, या बुतकदा हो

पुकारा आपने, कैसे यकीं हो ?
किसी दीवार से लौटी सदा हो...

न दौलत माँगते हैं हम, न जन्नत
हमारा हक़ बने उतना अदा हो

सहा जाता नहीं मिलना, बिछडना
हमेशा के लिए अब अलविदा हो

गुलों, वाक़िफ़ करो लुत्फ़-ए-शहद से
'भँवर'को इश्क़ से कुछ फायदा हो

1 टिप्पणी:

Sunil Kumar ने कहा…

कहें कैसे, पिलाते हो नज़रसे ?
अगर बदनाम हो तो मैकदा हो
khubsurat sher, mubarakbad kabul karen