शुक्रवार, जुलाई 22, 2011

मौत से पहलेही मुँहपर ओढ ली लोगोंने चादर

मौत से पहलेही मुँहपर ओढ ली लोगोंने चादर 

शुक्रिया तेरा, ज़माने, जी रही हूँ लाश होकर 



हो अगर बसमें, हमें रख दें तिजोरीमें छुपाकर 


रूह का वह खून कर दें, जिस्म परदेमें लिपटकर 



"बोल, तेरी क्या रज़ा है," यह नहीं पूछा किसीने 


हर कोई हाफ़िज़ बना है, बाप, भाई, दोस्त, शौहर 



ज़लज़ला या बाढ या सूखा, वजह सबकी यही है 


कह रहें ज़ाहिद सभी, अच्छे नहीं हव्वा के तेवर 



खूबसूरत है, सुनहरा है, मगर फिरभी कफ़स है 


ले मुझे आये हो जिसमें आप डोलीमें बिठाकर

कोई टिप्पणी नहीं: