बुधवार, मार्च 21, 2012

ख़्व्वाब, चैन, नींदें, सब कुछ मसल गए

ख़्व्वाब, चैन, नींदें, सब कुछ मसल गए
आरिज़ों से होकर आँसू निकल गए

आप को समाँ का जब तक पता चला
थक गयी बहारें, मौसम बदल गए

दास्ताँ सुनायी तो हाल यह हुआ
सच गले न उतरा, पर झूठ चल गए

आँधियों ने पूछा होगा मेरा पता
देख, नाखुदाके तेवर बदल गए

क्या तुम्हे ज़रूरत थी पाँव की, 'भँवर' ?
आ सके न चलकर, काँधों के बल गए

1 टिप्पणी:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

waah...

दास्ताँ सुनायी तो हाल यह हुआ
सच गले न उतरा, पर झूठ चल गए
excellent.......

anu