सोमवार, फ़रवरी 22, 2010

कई सदियोंसे बैठे हम खुशी की राह तकतें हैं

कई सदियोंसे बैठे हम खुशी की राह तकतें हैं


बिताने को शबेफुरकत ग़मोंके जाम चखतें हैं




खुली आँखोंसे हम पूजा किसीकी कर नहीं सकतें


पुराने मंदिरोंके बुत ज़रा टुटेसे लगतें हैं




बडा आसान होता है किसीसे प्यार कर लेना


हमें देखो, यही गलती हज़ारों बार करतें हैं




तुम्हारी शानमें गुस्ताख़ियाँ करतें रहें अब तक


तुम्हारी शानमें, लो, आज कुछ अशआर कहतें हैं




तेरा छूना नहीं है लाज़मी गुँचें चटकने को


'भँवर', तेरे बिना भी अनगिनत गुलज़ार खिलतें हैं

1 टिप्पणी:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

badhia , badhai.