शनिवार, नवंबर 13, 2010

शहर है यह या भरा बाज़ार है

शहर है यह या भरा बाज़ार है

बिक रहा है हर कोई, लाचार है



पत्थरोंके बीज बोए वक़्तने


अब जहाँ जाए नज़र, दीवार है



काम यह वैदो-हकीमों का नहीं


इस वतन की रूह तक बीमार है



ढाँपकर मुँह कर रहे ऐयाशियाँ


यूँ कहो के लोग इज़्ज़तदार है



हमकदम कैसे बने कोई तेरा


ज़िंदगी, कैसी तेरी रफ्तार है

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