शुक्रवार, दिसंबर 25, 2009

ज़िंदगी के ख्वाब से मैं डर रहा हूँ

ज़िंदगी के ख्वाब से मैं डर रहा हूँ
मौत के आनेसे पहले मर रहा हूँ


मौत से डरता रहा हूँ रात-दिन मैं
इस तरह, ना जी रहा, ना मर रहा हूँ

कारवाँ चलता रहा है ज़िंदगी का
मैं ज़रा पीछे मगर अक्सर रहा हूँ


बंद दिल के द्वार जब से कर चुकी वह
मैं तभी से आज तक बेघर रहा हूँ

वह गयी तो दिल धडकना छोड बैठा
सिर्फ़ इक बेजानसा पैकर रहा हूँ

अब तो खुशबूभी नहीं उनके ज़हनमें
इत्र दामन का कभी बनकर रहा हूँ

बढ रहा था, आ गया ठहराव कैसा ?
आप अपनी राहमें पत्थर रहा हूँ

हँस रहें हो देखकर खाली सुराही
यह न भूलो मैं कभी साग़र रहा हूँ

और तो कुछ बन न पाया ज़िंदगीमें
फ़क्र हैं मुझको, 'भँवर', शायर रहा हूँ

3 टिप्‍पणियां:

कडुवासच ने कहा…

हँस रहें हो देखकर खाली सुराही
यह न भूलो मैं कभी साग़र रहा हूँ

अब तो खुशबूभी नहीं उनके ज़हनमें
हाय, दामन का कभी इत्तर रहा हूँ
... अतिसुन्दर , गजल लाजबाव/बेमिसाल !!!

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

वह गयी तो दिल धडकना छोड बैठा
सिर्फ़ इक बेजानसा पैकर रहा हूँ

अब तो खुशबूभी नहीं उनके ज़हनमें
हाय, दामन का कभी इत्तर रहा हूँ

wah, kya khoob kaha hai. behatareen.

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

नव वर्ष २०१० की हार्दिक मंगलकामनाएं. ईश्वर २०१० में आपको और आपके परिवार को सुख समृद्धि , धन वैभव ,शांति, भक्ति, और ढेर सारी खुशियाँ प्रदान करें . योगेश वर्मा "स्वप्न"