बुधवार, जनवरी 04, 2012

कितनी हैं बोझल साँसें

कितनी हैं बोझल साँसें
हैं गर्दे-मकतल साँसें

क्या सोचूँ मैं बरसों का
जब हैं पल दो पल साँसें

कैसी नाजुक है डोरी
ढाके की मलमल साँसें

रुकने तक चलना लाज़िम
कैसी हैं बेकल साँसें

हम सब हैं नन्हे बच्चें
हैं माँ का आंचल साँसें

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

कैसी नाजुक है डोरी
ढाके की मलमल साँसें

वाह...वाह...वाह...बेजोड़.

नीरज