रविवार, जनवरी 15, 2012

कुछ मुस्करहाटें हमें नसीब हो

कुछ मुस्करहाटें हमें नसीब हो
हम भी कभी हुज़ूर के करीब हो

यूँ हाथ छोडकर न जाइये, अजी 
ऐसा न हो के रास्ता मुहीब हो

दिल में हमीं रहे, लबों पे भी हमीं
फिर चाहे साथ आप के रक़ीब हो

दिलबर वफ़ा करे तमाम उम्र, फिर
परवाह क्या, अमीर हो, गरीब हो

कुछ इस तरह से नज़्म पेश कर, 'भँवर'
माने सुख़न फ़हम के अंदलीब हो

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