सोमवार, नवंबर 30, 2009

रातभर जल रहा था परवाना

रातभर जल रहा था परवाना
क्यों न उजलेगी मेहफ़िलेजाना ?

चँद घडियाँ हैं दिल लगाने की
उम्रभरका है दिल को समझाना

इश्क़ शामिल है क्या गुनाहोंमें ?
क्यों कफ़स़ जैसा है सनमखाना ?

आँख तो नम है इक ज़मानेसे
बात कल की है, आपने जाना

सूख जाये ना प्यासमें आँखें
ग़मसे भर देना एक पैमाना

यह न पूछों की राहमें क्या है
फूल दिलका है, रौंदकर जाना

घर गरीबोंके रोशनी कैसी ?
आगमें लिपटा हो न काशाना
 
तलखियाँ घूँट घूँट देती है
ज़िंदगी है अजीब मैखाना

2 टिप्‍पणियां:

kishore ghildiyal ने कहा…

achha hain

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

bahut umda.badhaai.